अरुण कुमार गुप्त, एडवोकेट इलाहाबाद हाईकोर्ट प्रत्याशी सदस्य बार काउंसिल ऑफ यूपीअरुण कुमार गुप्त, एडवोकेट इलाहाबाद हाईकोर्ट प्रत्याशी सदस्य बार काउंसिल ऑफ यूपी
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अरुण कुमार गुप्त, एडवोकेट
इलाहाबाद हाईकोर्ट
प्रत्याशी सदस्य बार काउंसिल ऑफ यूपी

तीन नए आपराधिक कानून, भारतीय न्याय संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023, एक जुलाई 2024 से लागू होंगे।

इन विधेयकों को वर्ष 2023 में संसद के शीतकालीन सत्र में पारित किया गया था। तीन नए कानूनों को लेकर लोगों के जेहन में कई तरह के सवाल हैं। महज चार दिन बाद पुलिस, जांच और न्यायिक व्यवस्था का चेहरा बदल जाएगा। कई तरह के मामलों में इन कानूनों का व्यापक असर पड़ेगा। नए कानूनों में महिलाओं और बच्चों के प्रति अपराधों की जांच को प्राथमिकता दी गई है। सूचना दर्ज होने के दो महीने के भीतर जांच पूरी होगी। अब इलेक्ट्रॉनिक रूप से समन की तामील की जा सकेगी। इससे कानूनी प्रक्रियाओं में तेजी आएगी। कागजी कार्रवाई कम होगी और सभी संबंधित पक्षों के बीच समुचित संवाद सुनिश्चित होगा। 19 फरवरी 2024 को ई-संपर्क के माध्यम से 7 करोड़ से अधिक नागरिकों को जागरूक करने के लिए एक ई-मेल भेजा गया है।
केंद्र सरकार के सूत्रों के मुताबिक, तीनों कानूनों के प्रावधानों के लागू होने की तिथि एक जुलाई 2024 निर्धारित की गई है। गृह मंत्रालय ने 25 दिसंबर, 2023 को तीनों नए आपराधिक कानूनों की अधिसूचना के तुरंत बाद पुलिस कर्मियों, जेल कर्मियों, अभियोजकों, न्यायिक अधिकारियों, फॉरेंसिक कर्मियों के साथ-साथ आम जनता सहित सभी पक्षों के बीच विभिन्न पहल शुरू की है। इसका मकसद, तीनों नए कानूनों के बारे में व्यापक जागरूकता फैलाना और इनका प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित करना है। चूंकि नए आपराधिक कानूनों में जांच, ट्रायल और अदालती कार्यवाहियों में प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल पर जोर दिया गया है, इसलिए राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो ने मौजूदा क्राइम एंड क्रिमिनल ट्रैकिंग नेटवर्क्स एंड सिस्टम्स एप्लिकेशन में 23 फंक्शनल सुधार किए हैं। एनसीआरबी ने नए आपराधिक कानूनों के क्रियान्वयन में राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों की निरंतर समीक्षा और सहायता के लिए 36 सपोर्ट टीमें और कॉल सेंटर बनाए हैं। राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र ने नए आपराधिक कानूनों के तहत अपराध स्थलों, न्यायिक सुनवाइयों और इलेक्ट्रॉनिक रूप से अदालती समन की तामील की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी की सुविधा के लिए ई-साक्ष्य, न्यायश्रुति और ई-समन एप विकसित किए हैं। पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो ने क्षमता निर्माण के लिए प्रशिक्षण मॉड्यूल विकसित कर सभी हितधारकों के साथ साझा किए हैं। बीपीआरएंडडी ने 250 प्रशिक्षण पाठ्यक्रम/वेबिनार/सेमिनार भी आयोजित किए हैं। इनमें 40,317 अधिकारियों/कर्मियों को प्रशिक्षित किया गया है। ब्यूरो के मार्गदर्शन में राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने 5,84,174 कर्मियों की क्षमता निर्माण का काम भी किया, जिनमें जेल, फॉरेंसिक, न्यायिक और अभियोजन पक्ष के 5,65,746 पुलिस अधिकारी और कर्मी शामिल हैं। यह सुनिश्चित करने के लिए कि देश के नागरिक परिवर्तनकारी सुधारों के बारे में जागरूक हों और विशेषकर महिलाओं और बच्चों पर इसके सकारात्मक प्रभाव के बारे में जागरूकता पैदा हो, केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, ग्रामीण विकास मंत्रालय और पंचायती राज मंत्रालय ने वेबिनारों के माध्यम से नए कानूनों का प्रचार-प्रसार किया, जिनमें लगभग 40 लाख जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं ने भाग लिया।
विधिक मामलों के विभाग ने राज्यों की राजधानियों में चार सम्मेलन भी आयोजित किए, जिनमें भारत के मुख्य न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय/उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों और विधि विशेषज्ञों सहित विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। उच्चतर शिक्षा विभाग के मार्गदर्शन में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने नए कानूनों के बारे में शिक्षकों और छात्रों को विषय से अवगत कराने के लिए 1,200 विश्वविद्यालयों और 40,000 कॉलेजों और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद ने लगभग 9,000 संस्थानों को नए कानूनों के बारे में सूचनात्मक फ़्लायर्स प्रसारित किए।
संसद की स्थायी समिति ने विधेयकों के विभिन्न प्रावधानों पर व्यापक विचार-विमर्श किया है। समिति ने विषय विशेषज्ञों, उच्च न्यायालयों, अनुसंधान केंद्रों, शिक्षाविदों, वकीलों, सिविल सोसाइटी, विधि विश्वविद्यालयों आदि के सुझाव प्राप्त किए और उन पर विचार किया है। इसने विभिन्न राज्य सरकारों/केन्द्रशासित प्रदेशों के प्रशासनों, संसद सदस्यों और पूर्व सांसदों और अन्य निजी व्यक्तियों/संगठनों के विचार भी प्राप्त किए। इन विधेयकों के परीक्षण के दौरान समिति ने 12 बैठकें कीं हैं। समिति ने 10 नवंबर 2023 को तीनों विधेयकों पर अपनी सिफारिशें दी। समिति की अधिकांश सिफारिशें सरकार द्वारा स्वीकार कर ली गईं। वर्ष 2023 में संसद द्वारा अपने शीतकालीन सत्र में विधेयकों पर विचार किया गया। विधेयकों पर चर्चा में लोकसभा से कुल 37 सांसदों और राज्यसभा से 40 सांसदों ने भाग लिया। संसद द्वारा पारित किए जाने के बाद इन विधेयकों को भारत की राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित किया गया और 25 दिसंबर 2023 को भारत के राजपत्र में अधिसूचित किया गया। केंद्र सरकार ने 1 जुलाई 2024 को इन तीनों कानूनों के प्रावधान लागू होने की तिथि निर्धारित की है।
ये हैं तीन कानूनों के प्रमुख बिंदु..
(1) ऑनलाइन घटनाओं की रिपोर्ट करना: अब कोई व्यक्ति संचार के इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से घटनाओं की रिपोर्ट कर सकता है, इसके लिए उसे पुलिस स्टेशन जाने की आवश्यकता नहीं है। इससे रिपोर्टिंग आसान और त्वरित होगी, जिससे पुलिस द्वारा त्वरित कार्रवाई सुगम होगी। (बीएनएस की धारा 173)
(2) किसी भी पुलिस स्टेशन पर एफआईआर दर्ज करना: जीरो एफआईआर शुरू होने से, कोई भी व्यक्ति किसी भी पुलिस स्टेशन पर प्राथमिकी दर्ज करा सकता है, चाहे उसका क्षेत्राधिकार कुछ भी हो। इससे कानूनी कार्यवाहियां शुरू करने में होने वाली देरी खत्म होगी और अपराध की तुरंत रिपोर्ट करना सुनिश्चित होगा। (बीएनएस की धारा 173)
(3) एफआईआर की निःशुल्क प्रति: पीड़ितों को एफआईआर की निःशुल्क प्रति प्राप्त होगी, जिससे कानूनी प्रक्रिया में उनकी भागीदारी सुनिश्चित होगी। (बीएनएस की धारा 173)
(4) गिरफ़्तारी होने पर सूचना देने का अधिकार: गिरफ़्तारी की स्थिति में, व्यक्ति को उनकी इच्छा के व्यक्ति को अपनी स्थिति के बारे में सूचित करने का अधिकार है। इससे गिरफ़्तार व्यक्ति को तत्काल सहायता और सहयोग सुनिश्चित होगा। (बीएनएस की धारा 36)
(5) गिरफ्तारी की जानकारी प्रदर्शित करना: गिरफ्तारी का विवरण अब पुलिस थानों और जिला मुख्यालयों में प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाएगा, जिससे गिरफ्तार व्यक्ति के परिवार और मित्रों को महत्वपूर्ण जानकारी आसानी से मिल सकेगी। (बीएनएस की धारा 37)
(6) फॉरेंसिक साक्ष्य संग्रह और वीडियोग्राफी: मामले और जांच को मजबूत करने के लिए, फॉरेंसिक विशेषज्ञों का गंभीर अपराधों के लिए अपराध स्थलों का दौरा करना और साक्ष्य एकत्र करना अनिवार्य हो गया है। इसके अतिरिक्त, साक्ष्यों से छेड़छाड़ को रोकने के लिए अपराध स्थल पर साक्ष्य संग्रह की प्रक्रिया की अनिवार्य रूप से वीडियोग्राफी की जाएगी। इस द्विआयामी नीति से जांच की गुणवत्ता और विश्वसनीयता काफी बढ़ जाएगी और निष्पक्ष रूप से न्याय दिलाने में योगदान मिलेगा। (बीएनएस की धारा 176)
(7) त्वरित जांच: नए कानूनों में महिलाओं और बच्चों के प्रति अपराधों की जांच को प्राथमिकता दी गई है, ताकि सूचना दर्ज होने के दो महीने के भीतर जांच पूरी हो सके।(बीएनएस की धारा 193)
(8) पीड़ितों को मामले की प्रगति का अपडेट देना: पीड़ितों को 90 दिनों के भीतर अपने मामले की प्रगति के बारे में नियमित अपडेट प्राप्त करने का अधिकार है। इस प्रावधान से पीड़ितों को सूचित रखा जा सकेगा और वे कानूनी प्रक्रिया में शामिल रहेंगे, जिससे पारदर्शिता बढ़ेगी और विश्वास बढ़ेगा। (बीएनएस की धारा 193)
(9) पीड़ितों के लिए निःशुल्क चिकित्सा उपचार: नए कानून महिलाओं और बच्चों के प्रति अपराध के पीड़ितों को सभी अस्पतालों में निःशुल्क प्राथमिक उपचार या चिकित्सा उपचार की गारंटी देते हैं। यह प्रावधान चुनौतीपूर्ण समय में पीड़ितों की कुशलता और स्वास्थ्य लाभ को प्राथमिकता देते हुए आवश्यक चिकित्सा देखभाल तक तत्काल पहुंच सुनिश्चित करता है। (बीएनएस की धारा 397)
(10) इलेक्ट्रॉनिक समन: अब इलेक्ट्रॉनिक रूप से समन की तामील की जा सकती है, जिससे कानूनी प्रक्रियाओं में तेजी आएगी, कागजी कार्रवाई कम होगी और सभी संबंधित पक्षों के बीच समुचित संवाद सुनिश्चित होगा। (बीएनएस की धारा 64, 70, 71)
(11) महिला मजिस्ट्रेट द्वारा बयान: महिलाओं के विरुद्ध कुछ अपराधों में पीड़िता के बयान, जहां तक संभव हो, महिला मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किए जाने चाहिए और अगर महिला मजिस्ट्रेट अनुपस्थित हों, तो महिला की उपस्थिति में पुरुष मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किए जाने चाहिए, ताकि संवेदनशीलता और निष्पक्षता सुनिश्चित हो सके तथा पीड़ितों के लिए अनुकूल वातावरण बनाया जा सके। (बीएनएस की धारा 183)
(12) पुलिस रिपोर्ट और अन्य दस्तावेज उपलब्ध कराना: आरोपी और पीड़ित दोनों को 14 दिनों के भीतर एफआईआर, पुलिस रिपोर्ट/चार्जशीट, बयान, स्वीकारोक्ति और अन्य दस्तावेजों की प्रतियां प्राप्त करने का अधिकार है। (बीएनएस की धारा 230)
(13) सीमित स्थगन: मामले की सुनवाई में अनावश्यक देरी से बचने के लिए न्यायालय अधिकतम दो स्थगन प्रदान कर सकते हैं, जिससे समय पर न्याय सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी। (बीएनएस की धारा 346)
(14) गवाह सुरक्षा योजना: नए कानूनों में सभी राज्य सरकारों के लिए गवाहों की सुरक्षा और सहयोग सुनिश्चित करने, कानूनी कार्यवाही की विश्वसनीयता और प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए गवाह सुरक्षा योजना को अनिवार्य किया गया है। (बीएनएस की धारा 398)
(15) जेंडर समावेश: “जेंडर” की परिभाषा में अब ट्रांसजेंडर व्यक्ति भी शामिल हैं, जो समावेश और समानता को बढ़ावा देगा। (बीएनएस की धारा 2(10))
1(6) सभी कार्यवाहियां इलेक्ट्रॉनिक मोड में होना: नए कानूनों में सभी कानूनी कार्यवाहियां इलेक्ट्रॉनिक रूप से संचालित करके, पीड़ितों, गवाहों और अभियुक्तों को सुविधा प्रदान की गई है, जिससे पूरी कानूनी प्रक्रिया सुव्यवस्थित और त्वरित होगी। (बीएनएस की धारा 530)
(17) बयानों की ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग: पीड़िता को अधिक सुरक्षा प्रदान करने तथा बलात्कार के अपराध से संबंधित जांच में पारदर्शिता लाने के लिए पुलिस पीड़िता का बयान ऑडियो-वीडियो माध्यम से रिकॉर्ड करेगी। (बीएनएस की धारा 176)
(18) पुलिस स्टेशन जाने से छूट: महिलाओं, 15 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों, 60 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों तथा विकलांग या गंभीर रूप से बीमार व्यक्तियों को पुलिस स्टेशन जाने से छूट दी गई है तथा वे अपने निवास स्थान पर पुलिस सहायता प्राप्त कर सकते हैं। (बीएनएस की धारा 179)
(19) महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध अपराध: महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध अपराधों पर कार्रवाई करने तथा उनकी सुरक्षा और उनके लिए न्याय सुनिश्चित करने के लिए बीएनएस में एक नया अध्याय जोड़ा गया है। (बीएनएसका अध्याय V)
(20) जेंडर-न्यूट्रल अपराध: महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध विभिन्न अपराधों को बीएनएस में जेंडर-न्यूट्रल बना दिया गया है, जिसमें जेंडर का ध्यान रखे बिना सभी पीड़ितों और अपराधियों को शामिल किया गया है।
(21) सामुदायिक सेवा: नए कानून में छोटे-मोटे अपराधों के लिए सामुदायिक सेवा की शुरुआत की गई है, जिससे व्यक्ति के व्यक्तिगत विकास और सामाजिक जिम्मेदारी को बढ़ावा मिलता है। सामुदायिक सेवा के तहत, अपराधियों को समाज में सकारात्मक योगदान देने, अपनी गलतियों से सीखने और मजबूत सामुदायिक बंधन बनाने का मौका मिलता है। (बीएनएस की धारा 4, 202, 209, 226, 303, 355, 356)
(22) अपराधों के लिए जुर्माना अपराध की गंभीरता के अनुरूप: नए कानूनों के तहत कुछ अपराधों के लिए लगाए गए जुर्माने को अपराध की गंभीरता के अनुरूप बनाया गया है, ताकि निष्पक्ष और आनुपातिक दंड सुनिश्चित हो सके, भविष्य में अपराध करने से रोका जा सके तथा कानूनी प्रणाली में जनता का विश्वास बना रहे।
(23) सरलीकृत कानूनी प्रक्रियाएं: कानूनी प्रक्रियाओं को सरल बनाया गया है ताकि उन्हें समझना और उनका पालन करना आसान हो सके, निष्पक्ष और सुलभ न्याय सुनिश्चित हो सके।
(24) तीव्र एवं निष्पक्ष समाधान: नए कानूनों में मामलों के निश्चित रूप से तीव्र एवं निष्पक्ष समाधान की व्यवस्था है, जिससे कानूनी प्रणाली में जनता का विश्वास बढ़ेगा।
(25) एकदम से बदलाव किये जाने पर निश्चित रूप से अत्यधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा लेकिन हमें इस बदलाव के लिए तैयार रहना पड़ेगा…

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