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हमरि माटी पाणी जौनसारी-बावरी, गांव-गढ़ौ का जिम्मदारा बोली-भाषा

मुकेश सिंह तोमर
जौनसार बावर के कवियों द्वारा भाषा-बोली पर आधारित दूरदर्शन देहरादून के माध्यम से ‘ हमरि माटी पाणी ‘ कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिसमें क्षेत्रीय कवि सुरेश कुमार मनमौजी, अर्जुन दत्त शर्मा, कवियत्री बिनीता जोशी, बलराम सिंह चौहान, नवनीत राठौर ने मूल जौनसारी भाषा में बेहद सुंदर वर्णन किया है। कवियों के द्वारा हमरि माटी पाणी कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य से यह साबित होता है कि आज भारत को आजाद होकर 77 साल हो गये है। जहाँ भारत के विभिन्न क्षेत्रों की मूल भाषा-बोली के लिखित दस्तावेज में किसी क्षेत्र की भाषा-बोली पर आधारित इतिहास और कहानियों पर संरक्षित रखा जाता है।
वही आज भी जनजातीय क्षेत्र जौनसार-बावर की जौनसारी-बावरी भाषा-बोली के लिखित प्रमाण का कोई इतिहास नहीं है। जबकि हमारी जौनसारी-बावरी भाषा-बोली का यही कहानियों का इतिहास है। लेकिन अपनी जौनसारी-बावरी बोली-भाषा का कोई लिखित इतिहास ही नहीं है। कवि अर्जुन दत्त शर्मा ने गांव, समाज के संस्कृति से जुड़ा जिमदारा बोली को जौनसारी बोली में हर बारीकी से वर्णन किया है। जौनसार बावर क्षेत्र में इस महत्वपूर्ण बोली का कोई हमारे पास आजतक लिखित इतिहास नहीं है। कवि सुरेश कुमार मनमौजी ने जौनसारी बोली में अपने विचारों को हम जिस क्षेत्र व गांव समाज से आते हैं। उस क्षेत्र की स्थानीय भाषा-बोली को जीवित व संजोने के लिए लिखित रखना भी आवश्यक है। जिसके लिए आने वाली भावी पीढ़ी के लिए संरक्षित रखना बेहद जरुरी है।
कवियत्री बिनीता जोशी ने जौनसारी भाषा-बोली में कविता की प्रस्तुति में माँ जमुना के महत्ता का विशेष वर्णन किया है, जो जौनसार बावर क्षेत्र के इतिहास को माँ जमुना जी की पवित्र धरती के रूप यहाँ की संस्कृति व सभ्यता के इतिहास को स्वर्ग की राह में जोड़ने का काम करती है। बलराम सिंह चौहान ने फौजी मेरो, भेजी मेरो जौनसारी बोली में कविता सुंदर वर्णन किया और साथ ही जौनसार-बावरी में कौदों के गौडावणे संस्कृति से भी रूबरू कराया। कवि नवनीत राठौर के द्वारा हरे-भरे वृक्षों का अत्याधिक दोहन पर गहरा प्रकाश डाला गया। जिसमें जौनसारी बोली में समाज के लोगों को पर्यावरण को जीवित रखने का सुंदर संदेश दिया गया है।
जौनसारी-बावरी कवियों के माध्यम से इस प्रकार के भाषा-बोली सम्मलेनों से क्षेत्र की संस्कृति से जुड़ी बोली-भाषा के बोच-चाल की भाषा जो हमारी विलुप्त होती जा रही है, क्षेत्र के लोग अपनी मुल्क की रहन-सहन की सभ्यता और संस्कृति को भूलते जा रहे हैं। वहीं कवि सम्मेलन के द्वारा बोली-भाषा की जन-जागृति का संदेश देने से लोगों को अपनी बोली-भाषा के मूल आखर का ज्ञान प्राप्त होगा।
क्षेत्र में आज जो हमारी भावी पीढ़ियां आ रही है। वह अपनी बोली-भाषा बोल भी नहीं पाते हैं ।जौनसारी-बावरी भाषा में इस शब्द का क्या अर्थ है। यदि हम अपनी बोली-भाषा को भूलते जा रहे हैं तो इसका मतलब है कि हम अपनी मूल संस्कृति और सभ्यता के धरोहर की पहचान को स्वंय खत्म करने के जिम्मेदार और दोषी भी हम समस्त जौनसारी-बावरी क्षेत्रवासी लोग स्वयं है। इसलिए इस भाषा-बोली को जीवित व बरकरार रखने के लिए हर युवा-युवती और क्षेत्र के प्रबुद्ध और बुद्धि जीवी, कवियों, लेखकों आदि सभी लोगों को इसे बचाने के लिए जागरूकता, और हर संभव प्रयास करने की बड़ी आवश्यकता है।

By admin