देहरादून। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से डी. डी. ए ग्राउंड, रोहिणी, सेक्टर 16, दिल्ली में आयोजित सात-दिवसीय भगवान शिव कथा के चतुर्थ दिवस माता पार्वती के जन्मोत्सव को बड़ी धूमधाम से मनाया गया। कथा का वचन करते हुए डॉ. सर्वेश्वर जी ने बताया कि महाराज हिमवान व महारानी मैना ने आदिशक्ति जगदंबिका की आराधना कर उन्हें पुत्री स्वरूप में पाने का वरदान मांगा। माता सती जो देह त्याग से पहले भगवान शिव से यह प्रार्थना करती हैं कि मैं अगले जन्म आपकी ही सेविका बनकर जन्म लूँ। उसी प्रार्थना के फलस्वरूप माता सती पार्वती के रूप में महाराज हिमवान के घर कन्या के रूप में जन्म लेकर आई।
महाराज हिमवान ने पुत्री के जन्म की खुशी में असंख्य गायों का दान किया। हमारी भारतीय संस्कृति में प्रत्येक खुशी के अवसर पर गोदान की परंपरा रही है। गोदान से बढ़कर और कोई भी उत्तम दान नहीं कहा जाता है। क्योंकि भारतीय नस्ल की जो देसी गाय है, वह गोवंश धरा का सबसे अमूल्य धन है। इसीलिए प्राचीन समय में विवाह शादी में गाय देने की प्रथा थी। यज्ञ के अंदर यजमान ब्राह्मणों को गाय दान किया करता था। विद्यार्थी गुरु को दक्षिणा के स्वरूप में गाय दिया करते थे। भारतीय नस्ल की देसी गाय देश की आर्थिक समृद्धि, पर्यावरण संरक्षण, अन्न उत्पादन, मानव स्वास्थ्य रक्षण इत्यादि में अपना महत्वपूर्ण योगदान देती है। इसीलिए संत अरविंद जी कहते हैं कि गाय धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष व समस्त पदार्थों को प्रदान करने वाली कामधेनु के समान है। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से “कामधेनु” प्रकल्प देसी गाय के संवर्धन व संरक्षण के उद्देश्य से चलाया जा रहा अति विशिष्ट प्रकल्प है। जिसके तहत विभिन्न गोशालाओं का निर्माण किया गया है जहां पर भारतीय नस्ल की देसी गाय बड़ी संख्या में मौजूद हैं। संस्थान के इस प्रकल्प का उद्देश्य यही है कि भारतीय संस्कृति और जनमानस में देसी गाय पुनरू अपना महिमामंडित स्थान प्राप्त कर सके।