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मुकेश सिंह तोमर
जौनसार बावर क्षेत्र में आखर लोक बोली-भाषा से संबंधित जौनसारी-बावरी कवि सम्मेलन आगामी 13 अक्टुबर 2024 को जौनसार बावर भवन जीवन गढ़ विकासनगर में होना है। जौनसार बावर क्षेत्र से जुड़े इस प्रकार के कवि सम्मेलन होने से वास्तव में क्षेत्र की विलुप्त हो रही वर्तमान समय में आखर, बोली-भाषा को पुनः जीवित व संरक्षित रखने का बड़ा माध्यम मिलेगा। जिससे वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए हम अपने क्षेत्र की विलुप्त हो रही धीरे-धीरे स्थानीय बोली-भाषा को भी चाह कर भी नहीं बचा पायेंगे। इसलिए जनजातीय समाज की मूल पहचान वहां की अपनी जौनसारी बोली-भाषा का संरक्षण तथा संवर्धन करके जीवन्त रखना तथा उसे संविधान की आठवीं सूची में भाषा का दर्जा दिलाना एक महत्वपूर्ण कार्य और जौनसार बावर क्षेत्र के लिए यह गौरव का विषय होगा।
असल में संस्कृति किसी भी समाज की जिंदगी का एक तरीका है और यह तरीका सदियों से जमा होकर उस समाज में छाया रहता है, जिसमें हम जन्म लेते है। इसलिए जिस समाज में हम पैदा हुए है अथवा जिस समाज की लोक संस्कृति, आखर, बोली-भाषा से मिलकर हम सब लोग जी रहे हैं। उस क्षेत्र संस्कृति हमारी संस्कृति है। जौनसार बावर क्षेत्र आज भी अपनी बोली-भाषा की पहचान, अपने समाज के रिति-रिवाजों और परंपराओं के लिए बहुत ही प्रसिद्ध क्षेत्र माना जाता है।
क्षेत्र की संस्कृति बोली-भाषा को जीवित व संरक्षित रखने के लिए कवि सम्मेलन जैसे कार्यक्रमों का होना क्षेत्र की संस्कृति के जन-प्रचारित करने के लिए भी इस प्रकार के आयोजन होना बेहद जरुरी है। किसी भी क्षेत्र की पहचान वहाँ की बोली-भाषा होती है, वहां का रहन-सहन तमाम तरह की यह संस्कारित मूल परंपराएं विद्यमान होती है। आज हमारे जौनसार बावर क्षेत्र में भी बदलते हुए पाश्चात्य संस्कृति के साथ-साथ यहाँ के स्थानीय मूल निवासी लोग भी पाश्चात्य देशों की संस्कृति बोली-भाषा का अध्ययन लेने में अपनी अलग स्टाईल के अंदाज में अपना इप्लिमेट करने में क्षेत्र में हजारों की संख्या में लोग पीछे नहीं है। अगर इसी प्रकार से हमारे जनजातीय समाज की बोली-भाषा आदि में इप्लिमेट का बदलाव तेजी से होगा तो हम अपनी विरासत की संस्कृति को ले डूबाने में तनिक भी देरी नहीं लगायेंगे।
संस्कृति वह चीज है जिसमें विकास में अनेक सदियों के अनुभवों का हाथ है।यदि जौनसार बावर क्षेत्र की मूल संस्कृति, बोली-भाषा और पहनावा, रहन-सहन आदि को भूलकर आने वाली भावी पीढ़ी के लिए कुछ नहीं बचा पायेंगे। यही नहीं, बल्कि संस्कृति बोली-भाषा हमारा पीछा जन्म-जन्मांतर तक करती है। जौनसारी-बावरी कवि सम्मेलन में जौनसारी बोली में ही अपनी कविता या विचारों को रखना है। जिससे इस प्रकार से कवि सम्मेलन आदि में जौनसारी-बावरी बोली-भाषा को रखने से विलुप्त होने से और भी मजबूती प्रदान होगी।
इसलिए जौनसार बावर क्षेत्र के प्रबुद्ध एवं बुद्धिजीवी, कवि एवं लेखकों को तथा समाज सेवी और राजनीतिकों को जौनसार बावर क्षेत्र की संस्कृति, बोली-भाषा जैसे कवि सम्मेलनों में हिस्सा बनकर क्षेत्र के पूर्वजों द्वारा हजारों, सैकड़ों वर्षों से चली आ रही संस्कृति को बोली-भाषा को पुनर्जीवित रखने में और विकसित करने में अपना अहम योगदान अवश्य दें। ताकि हम अपने जौनसार बावर क्षेत्र की संस्कृति, बोली-भाषा को सदियों के लिए जीवित रख सकें। मरने के बाद हम अन्य वस्तुओं के साथ अपनी संस्कृति की विरासत वही अपनी संतानों के लिए छोड़ जाते हैं। जिसका अनुसरण जन्म-जन्मांतर आगे पीढ़ी-दर- पीढ़ी करती आ रही है।

By admin