मुकेश सिंह तोमर
जौनसार बावर क्षेत्र में परिवार की हर पीढ़ी में जेष्ठ पुत्र की विवाह में रहीणीं जिमाई की परंपरा विरासत से ही हमारे क्षेत्र के पूर्वजों द्वारा संजोयी संस्कृति मातृशक्ति सम्मान, इज्जत की मजबूत महिला सशक्तिकरण की परंपरा हमारे जौनसार बावर क्षेत्र में विद्यमान रही है। जहाँ आज देश-दुनियां और देश की सरकारें महिला सम्मान और सशक्तिकरण को मजबूत करने की जागरूकता की बातें करती आ रही है। वहीं हमारा जौनसार बावर क्षेत्र प्राचीन काल से ही हमारे पूर्वजों के द्वारा बनाई गई क्षेत्र के लिए महिलाओं के इज्जत, सम्मान और महिलाओं की सशक्तिकरण को लेकर मजबूत परंपरा और संस्कृति का आज दुनियाँ के किसी भी कौने में किसी क्षेत्र के पास समाज में मातृशक्ति के सम्मान और इज्जत का मजबूती का उदाहरण जौनसार बावर क्षेत्र के अलावा कई नहीं मिलेगा।
आज जौनसार बावर क्षेत्र में रहीणीं जिमाई महिलाओं के सम्मान, इज्जत और महिलाओं को सशक्तिकरण के मजबूती के उदाहरण इस जौनसार बावर क्षेत्र के पास अपनी पूर्वजों की बनायी संस्कृति से आज भी जीवित मिल रहा हैं। लेकिन खत लखवाड़ के ग्राम बान्सू गांव में रहीणीं जिमाई के मान-सम्मान और इज्जत की संस्कृति को पूर्ण रूप से विवाह में प्रतिबंधित करके एक हिसाब से मूल परंपरा की संस्कृति का अपमान ही समझा जायेगा। जिस संस्कृति को हमारे पूर्वजों ने जिया था। प्राचीनता और गौरव के केंद्र के साथ अब जौनसार बावर क्षेत्र में रहीणीं जिमाई की पूर्वजों की बनायी रिति-रिवाजों व परंपराओं की संस्कृति के धरोहर का ज्ञान में जौनसार बावर क्षेत्र प्रणाली का अनमोल खजाना है। बौद्धिक सांस्कृतिक-आध्यात्मिक और कलात्मक क्षेत्रों में दोनों ने अपने हृदय में मूल संस्कृति और परंपराओं के ज्ञान की विरासत को संजो रखा है। जौनसार बावर क्षेत्र आदर्शवान संस्कृति, सभ्यता और रिति-परंपराओं का प्रतीक रहा है।
देश की एक राष्ट्रपति महिला है। उत्तराखंड विधानसभा की स्पीकर महिला है, मुख्य सचिव भी महिला है, इस समय कई जिला पंचायत अध्यक्ष भी महिला है। जिस जौनसार बावर क्षेत्र में महिलाओं के रहीणीं जिमाई के सम्मान और इज्जत की संस्कृति को प्रतिबंधित किया जा रहा है। उसी जौनसार बावर क्षेत्र की दो बार देहरादून जिले की सम्मानित जिला पंचायत अध्यक्ष महिला सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित भी हुई है।
आज जो हम आई. ए. एस और पी. सी. एस बन रहे है। ये सब हमारे संस्कृति और समाज की देन है। जो हमें आदिवासी समाज की संस्कृति का दर्जा मिला है।
लेकिन आज खत लखवाड़ के ग्राम बान्सू गांव में रहीणीं जिमाई यानिकी पूरे गांव की रंईटूड़ियों को एक परिवार के पहले पीढ़ के पुत्र के विवाह में पूरे गांव की रंईटूड़ियों के सम्मान और इज्जत को क्षेत्र की संस्कृति से दरकिनार कर प्रतिबंधित किया जाता है। अपने पूर्वजों की संस्कृति, समाज और धरोहर को न भूले और न ही संस्कृति के मान-सम्मान और इज्जत को प्रतिबंधित न किया जाएं।
सरकार की पहल यह कि महिलाओं को ज्यादा से ज्यादा प्रथम पंक्ति पर लाया जाए, और सरकार की यह भी योजना है कि महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण पंचायतों में और लोक सभा में 33 प्रतिशत आरक्षण है। जबकि दुर्भाग्य कि कुछ चंद गांव ने हमारी जो नारीशक्ति है। उसके संस्कृति के सम्मान, इज्जत और शौरत को गांव के किसी परिवार के पहले पीढ़ी के जेष्ठ पुत्र के विवाह रस्म रिवाज के रहीणीं जिमाई मातृशक्ति के और अपने पूर्वजों के बनाये ऐतिहासिक सम्मान, इज्जत और धरोहर की संस्कृति को नहीं संजोए पा रहे है।
वर्तमान समय में विवाह के बढ़ते चलन में जो देखा-देखी और शान-शौकात का दिखावा करके हम बेफालतू की आईटमों को खुद बढ़ाकर परोस रहे है, जिसकी बर्बादी और नुकसान हमारे सामने दिखाई देता है। हम क्षेत्र के लोग विकासनगर, देहरादून आदि शहरों में लाखों रूपये मैरिज वैडिंग पोइंट के बुकिंग खर्च में इन्वेस्टमेंट कर देते हैं, जहाँ गाड़ी पार्किंग व पानी, टायलेट जैसी आदि सुविधा के लिए भी हजारों लाखों रूपये खर्च करने पड़ते है एक शादी बनाने के लिए। लेकिन जब गांव में पहले पुत्र के विवाह के रिवाज में रहीणीं जिमाई के भोज हिस्सा देने में हम लोग गांव मातृशक्ति के सम्मान और इज्जत के संस्कृति और धरोहर क्यों बंद कर रहे हैं?
विवाह में उस फिजूलखर्ची आईटमों पर प्रतिबंध लगाना आवश्यक है। ना कि रहीणीं जिमाई मातृशक्ति के सम्मान और इज्जत के संस्कृति और धरोहर के रिति-परंराओं को बंद कर दिया जाए जोकि ठीक नहीं है सभ्य समाज की संस्कृति के लिए। इन लोगों को देश के प्रथम नागरिक महामहिम राष्ट्रपति से सीख लेनी चाहिए जोकि खुद एक आदिवासी समाज की संस्कृति और परंपराओं से जुड़ी महिला है।