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मुकेश सिंह तोमर
आज से पहले सैकड़ों-हजारों साल पहले कभी जौनसार बावर क्षेत्र में करवा चौथ का व्रत कभी भी विवाहित महिलाओं के द्वारा नहीं किया जाता था। समय के परिर्वतन और पाश्चात्य संस्कृति के देेखा-देखी के चलन को देखते हुए जौनसार बावर क्षेत्र की विवाहित युवा महिलाएं भी अब करवा चौथ व्रत को करना शुरू कर दिया है। हांलाकि मैं यह नहीं कहता हूँ कि जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर की सभी विवाहित महिलाएं करवा चौथ का व्रत करती है। लेकिन कुछ विवाहित युवा महिलाएं इस करवा चौथ का व्रत रखने के लिए अपने पति की लंबी उम्र के लिए कामनाएं करने लग गई है।
अपनी संस्कृति, सभ्यता और रिति-रिवाजों की अनूठी परंपराओं के लिए जौनसार बावर क्षेत्र प्राचीन काल से ही अत्यंत महत्वपूर्ण त्यौहारों के लिए प्रसिद्ध रहा है। जिस जौनसार बावर क्षेत्र में महाभारत काल से ही देवताओं की पवित्र भूमि के लिए विख्यात माना जाता है। जिस जौनसार बावर क्षेत्र की भूमि पर चार महासू देवता का वास रहता है। जहाँ परिवार के सामुदायिक संग में एक पूर्णिमासी का व्रत रखा जाता है। जो चंद्रोदय के जीने पर यानिकी चांद जब पूरा होकर निकलता था तब कहा जाता है कि अब पूर्णमासी का व्रत कर सकते हैं, और वह व्रत पूरे परिवार के जीवन को खुशहाली के लिए किया जाता है।
लेकिन आज हम हिन्दू लोग उस मूल सनतनी वास्तविक को भूल रहे है, जो भारतीय सनातन संस्कृति की अहम व्रत की पवित्रता है। हम अपने देवी-देवताओं को भूल रहे है, जिसका कि हम हिंदू सनातनी लोग आज अपने देवताओं के साथ दूसरे समुदाय के लोगों द्वारा गलत तरीके से दुष्प्रचारित करने का कार्य हम लोग देख रहे हैं। हमें इन चीजों से सबक सीखना होगा, और अपने देवी-देवताओं के प्रति सही से धार्मिक मान्यताओं से पूजा, आरती करनी होगी। आज हम पाश्चात्य देशों की संस्कृति को अपनाने का काम करते आ रहे है।
हम हिन्दू सनातन संस्कृति के लोग अपने देवी-देवताओं को न मानकर दूसरे पाश्चात्य देशों के धर्मों और देवताओं की पूजा-पाती करने लग गए है। जोकि हम अपने हिन्दू धर्म और हिन्दू देवी-देवताओं को भूलने का काम हम स्वत:करने लग गये हैं। इसलिए हिन्दू सनातन संस्कृति के लोगों को अपने कुल देवी-देवताओं की आराधना करनी चाहिए, ताकि हम अपने परिवार के भीतर गर्मजोशी और शांति को बढ़ावा देकर दिन के आध्यात्मिक सार को सुरक्षित रखें।
ऐसे भी उत्तराखण्ड राज्य देव भूमि के रूप में विख्यात है, और यहाँ की संस्कृति में करवा चौथ व्रत का कोई महत्व ही नहीं था। मगर देखा-देखी के चलन और पाश्चात्य देशों की संस्कृतियों ने कुछ चीजें आवश्यक और फिजूलखर्ची का फैशन बना दिया है।
लेकिन आज यहाँ के जनमानस को परिवर्तन की कुछ अंधाधुंध और चकाचौंध दौड़ की देखा-देखी ने अपने कुल देवी-देवताओं को भी यहाँ के जनमानस को भूलने का काम कर दिया है। यदि व्रत को करना ही है तो विवाहित महिलाओं को अपने पति की लंबी उम्र के लिए अपने क्षेत्र के कुल आराध्य देवी-देवताओं के द्वार में जाकर प्रर्थाना कर अपने पति के जीवन की खुशहाली की लंबी उम्र की मन्नत की दुआ मांगती। जहाँ कुल आराध्य देवता भी प्रसंन्न होते है।
लेकिन ऐसा कहां, यह तो पाश्चात्य संस्कृति की चकाचौंध दुनियाँ का अलग अंदाज न हो तो कौन दूसरा देखेगा कि आपने क्या किया है और क्या नहीं किया है? वह विवाहित महिलाएं भी है जो कभी करवा चौथ का व्रत रखा ही नहीं है। जिन विवाहित महिलाओं को यहाँ तक भी पता नहीं है कि करवा चौथ का व्रत क्या होता है। क्या उनके पति की उम्र ईश्वर कम कर देगा कि आपकी पत्नी ने करवा चौथ का व्रत नहीं रखा है। अंधाधुंध और चकाचौंध ने इस मन को इन चीजों से संभालना सीखा दिया तो मन को जो संतुष्टि प्राप्त हुई, उस प्रसन्नता की जीवन की खुशहाली के बराबर कोई चीज नहीं है।

By admin