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देहरादून। एक बार फिर ज्ञान और अनुभव की दोहरी ताकत के साथ भारतीय डॉक्टरों ने चिकित्सा क्षेत्र में बड़ी सफलता हासिल की है। दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के डॉक्टरों ने नेपाल के एक ऐसे किशोर की जान बचाई जो लंबे समय से काफी दुर्लभ बीमारी से ग्रस्त था। बार बार दौरे पड़ने पर यह मिर्गी की दवाएं लेता रहा लेकिन असल बीमारी पकड़ से बाहर रही। भारत आने के बाद मरीज को डिफ्यूज सेरेब्रल प्रोलिफेरेटिव एंजियोपैथी बीमारी का पता चला जिसके अब तक 100 से भी कम मामले सामने आए हैं। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें मस्तिष्क में धमनियों की दीवारों पर एमिलॉयड नामक प्रोटीन जमा हो जाता है। सीएए मस्तिष्क में रक्तस्राव और मनोभ्रंश का कारण बनता है।
नई दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल्स के न्यूरोसर्जरी विभाग के सलाहकार डॉ. गौरव त्यागी ने बताया कि नेपाल के इस किशोर की यह बीमारी और उसकी कहानी दोनों ही काफी दुर्लभ हैं। मरीज कई साल तक अपनी परेशानियों से लड़ता रहा और धीरे धीरे वह इसकी पकड़ में पूरी तरह से आने लगा डॉ. त्यागी ने कहा कि बीमारी की पहचान के बाद एक योजना बद्ध तरीके से उपचार शुरू किया इसके तहत एन्सेफेलो-ड्यूरो-आर्टेरियो-पियाल-सिनांगियोसिस प्रक्रिया की गई। यहां गौर करने वाली बात यह है कि सीपीए बीमारी के लिए इस प्रक्रिया का उपयोग अब तक केवल आठ मामलों में ही किया है। इस नवीन तकनीक में मस्तिष्क धमनी, ड्यूरा, और पेरिक्रानियल ऊतकों का उपयोग करके मस्तिष्क की रक्त आपूर्ति को मजबूत किया गया। वैकल्पिक रक्त आपूर्ति बनाने के लिए इन ऊतकों को मस्तिष्क में प्रभावित क्षेत्र पर रखा गया।
डॉ. गौरव त्यागी ने कहा इस युवा मरीज का इलाज करना और उसमें सुधार देखना सम्मान की बात है सीपीए एक अत्यंत दुर्लभ और जटिल स्थिति है इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में हमारी वैस्कुलर न्यूरो सर्जरी टीम की उन्नत क्षमताओं से कामयाबी मिली इस यात्रा में हमारे इंटरवेंशनल न्यूरोरेडियोलॉजिस्ट डॉ. निश्चिंत जैन भी अहम साथी रहे जिन्होंने सेरेब्रल एंजियोग्राफी करते हुए एक विस्तृत साहित्य समीक्षा की और फैसला लेने में हमारी मदद की इसके अलावा न्यूरोलॉजी में वरिष्ठ सलाहकार डॉ. पी.एन. रेनजेन ने मरीज की दौरे की दवाओं की समीक्षा करते हुए हमारे द्वारा अपनाई गई नवीन एन्सेफेलो-ड्यूरो-आर्टेरियो-पियाल-सिनांगियोसिस प्रक्रिया का मार्गदर्शन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
जानकारी के अनुसार, नेपाल का 17 वर्षीय किशोर बीते चार साल से अपने दाहिने अंगों में कमजोरी महसूस कर रहा था। उसे बार-बार दौरे आते और तेज सिरदर्द होता था। पांच अलग-अलग मिर्गी-रोधी दवाएं लेने के बाद भी उसकी परेशानी कम नहीं हुई। दिल्ली के अपोलो अस्पताल आने पर उसे हेमिपेरेसिस हुआ जिसका मतलब है कि उसके हाथ की पकड़ की ताकत करीब 50ः से कम थी और वह बिना सहारे के मुश्किल से चल पा रहा था। डॉक्टरों ने जब चिकित्सा जांच शुरू की तो एमआरआई और डिजिटल सबट्रैक्शन एंजियोग्राफी से मरीज में डिफ्यूज लेफ्ट सेरेब्रल प्रोलिफेरेटिव एंजियोपैथी बीमारी का पता चला जो दुनिया भर में काफी दुर्लभ श्रेणी में आती है।
अब डॉक्टरों के आगे असल चुनौती इस दुर्लभ बीमारी का उपचार था। इसके लिए डॉक्टरों ने एन्सेफेलो-ड्यूरो-आर्टेरियो-पियाल-सिनांगियोसिस प्रक्रिया को अपनाया जिसमें मरीज के मस्तिष्क में नए रक्त आपूर्ति चौनल बनाने के लिए यह प्रक्रिया की जाती है। आमतौर पर इस प्रक्रिया का पालन मोयामोया बीमारी में करते हैं जो एक दुर्लभ रक्त विकार है। डॉक्टरों के अनुसार इस प्रक्रिया में करीब चार घंटे का समय लगा। बड़ी बात यह भी है कि पांच दिन में ही मरीज की रिकवरी हुई और उसे छुट्टी दे दी गई। सर्जरी के दो सप्ताह बाद, वह दौरे पर नियंत्रण के साथ लक्षण-मुक्त रहे। फिलहाल मरीज कमजोरी के लिए पुनर्वास के दौर से गुजर रहा है।
उन्होंने कहा न्यूरो सर्जरी के क्षेत्र में नई तकनीकों को आगे बढ़ाने और साक्ष्य-आधारित उपचार प्रदान करने की प्रतिबद्धता के कारण, मुझे नेपाल की यात्रा के दौरान उनके परिवार से मिलने का सौभाग्य मिला और उन्हें अच्छा देखकर खुशी हुई। सर्जरी के बाद रोगी के जीवन की गुणवत्ता में शुरुआती सुधार का अनुभव देखना बेहद संतुष्टिदायक है। हम जानते हैं कि सर्जरी का प्रभाव लंबे समय तक रहेगा लेकिन अगर हम बीमारी को बढ़ने से रोकने में सक्षम हैं तो यह हमारे प्रयास की सबसे बड़ी जीत है। यह मामला विश्व स्तरीय देखभाल प्रदान करने और चिकित्सा विज्ञान की सीमाओं को आगे बढ़ाने के प्रति हमारे समर्पण को मजबूत करता है।

By admin